सोमवार, 28 मार्च 2022

बसन्त का छोर

बसन्त का छोर

नव पल्लव ज्यूं शोभित हैं
हर तरु की हर डाली पर
शुष्क धरा पर,शिशु टेसू
बिछा रहे ज्यूं मतवाली फर

नव मुकुन्द ज्यूं पुष्पित है
भ्रमर डोलते ज्यूं उन पर
शुष्क तृणों से भरी डगर पर
मृग डोले ज्यूं इधर उधर

आम्र तरु पर लटक रहे ज्यूं
कैरी गुच्छे गदराये से
महुए के फूलों से ज्यूं उठती
महक नशीली मतवाली सी

प्रात वायु की शीतलता में
ज्यूं प्रखर हो रहा अनल इधर
अरूण रक्तिमा में ही झलके
ज्यूं अंशुमालि का तेज प्रखर

जल धाराओं के चहुंदिश गुंजित 
ज्यूं पशु, पक्षी ,कीटों के शोर
हरित चुनरिया विहीन खेत
ज्यूं दिखा रहे बस इसी ओर

कूंच कर रहा ऋतुराज बसन्त
आता ग्रीष्म ऋतु का अब जोर

उमेशकुमारश्रीवास्तव ,जबलपुर , दिनांक २९.०३.१७

आकाक्षाओं के पद तले

आकाक्षाओं के पद तले

नित संघर्ष
स्वमं से
द्धन्द, मल्ल
उन्माद की
सीमा तले

जीवन !
जीवन
चलता चले
तल्ख धूप हो
या चांदनी हो चढ़ी
हम खड़े
ताड़ से , 
और
अखाड़े में पड़ी है 
उम्र ,
कदमों तले

तलासते खुशियां
गुम हो गये
खोजने लगे 
अब
स्वमं को 
सभी
सम्भवतया
स्वंम मैं भी

कई दिन हुए
खुद से मिले
औरों की आदत
यूं पड़ गई

आज जो हम मिले
चौंक ही हम गये
जो गैरोँ सा उसे
बस देखते ही रहे
किताबों में वो कहीं
पढ़ा सा लगा
वो अनजान था
कुछ परेशां लगा

कुछ इसारे किये
मगर मौन ही
इधर द्वन्द था
ना समझने का ही

हिकारत भरी 
नजर डाल कर
विदा कर दिया
अजनबी सा उसे

है फुरसत कहां
भूत से मैं मिलूं
आज से भी मिलूं
जब वक्त ,ये ही नहीं

दूर की सोच है
इक महल स्वप्न का
चाहतों के किले 
हैं घेरे मुझे
जिनके लिये
बस जी रहा हूं

आकाक्षाओं का घेरा 
संकुचित क्यूं करू
भोगना है मुझे
सुख की हर बून्द को

सुख के लिये
द्वन्द जी रहा हूं
चिन्तन बिना
कल जी रहा हूं
हूं खोया स्वमं को
आज की दौड़ में
ये जाने बिना
तम विवर में जीने के
पल जी रहा हूं

उमेश कुमार श्रीवास्तव , जबलपुर, दि० २९.०३.१७

मंगलवार, 15 मार्च 2022

परिवर्तन

बून्द बून्द जीवन जल पीता
हर जीवन घट रीता रीता
तरल सरल निर्मल निर्झरता
त्याग चला ये जीवन मीता ।

सूख गये सब ही अब सोते
अपने सब अपनत्व हैं खोते
ह्रदय झरोखे सब के ही रीते
स्निग्ध भाव सब ही का बीता ।

मीत वृत्त खंडित हो जर्जर
अस्त व्यस्त रिस्तों के पंजर
दूर हुए सब अपनों के साये
दिये बुझे,है तम की अब गीता।

गिद्ध गये ,सब बने गिद्ध हैं
नोच खसोट में, सभी सिद्ध हैं
इनका किसी से भेद कहां है
इनका ही अब रूधिर सभी का ।

बदल गई सब परिभाषाएं
परवान चढ़ी हैं अभिलाषाएं
कहां रूकेंगी,क्या कोई जानें
विलख रहा है प्राण सभी का ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव
महाकाल एक्सप्रेस ट्रेन
वाराणसी से झांसी यात्रा
दिनांक १५.०३.२०२२










रविवार, 13 मार्च 2022

गज़ल , मैं मलंग क्या करूं


                  गज़ल

मैं मलंग क्या करूं ,जो खुशमिजाज हूं,
सोचते सब मुझे,तकलीफ़ नहीं कोई ।

बदगुमानियां ना करा ,तब्बस्सुम लिये चेहरे
दर्द की मेरे ,कोई परवाह नहीं करता ।

खुदगर्ज ना बन सका, बीती जिन्दगी,
खुदगर्ज कह मुझे, सदा, सताता ये जहां ।

ख्वाब सा हूं जी रहा ,लोगों के बीच मैं,
तकदीर ख्वाब की यही, जग, भूलता जहां ।

था मलंग ,हूं मलंग ,मलंग ही रहूं 
रब से यही तकदीर, मैं, मांगता सदा ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव 
वाराणसी , दिनांक १३. ०३. २०२२

शनिवार, 12 मार्च 2022

होली

होली के रंग सब के संग

होली के रंग में
रंगीली उमंग में
आपका भी साथ हो
दिलों की ही बात हो
नयनों में प्यार हो
रंगों की बहार हो
हाथों में गुलाल हो
चेहरे सब के लाल हों

फागुनी बयार में
सुनहरी एक तान हो
झूमते बदन के संग
खिलती मुस्कान हो

यार हो प्यार हो
दुलार ओ सत्कार हो
जिन्दगी की रंगीनियों की
खुली इक दुकान हो

बांटिये खुले खुले
बन्द न कोई प्राण हो
प्यार भरे रंग सब
न दिल में कोई त्राण हो

हरे नीले पीले के संग
गुलाबी भी श्रृंगार हो
दिलों में भरे उंमग
लाली लिये प्यार हो

रिस्तों की खटास पर
मिठाइयौं की मार हो
मिटा दो खटास सब
होली की पुकार हो

गले लगा प्रिये सभी
रंग दो सभी चुनर
न हो अलग थलग कोई
बस प्यार की खुमार हो

आओ खेले होली हम सब
राधा कान्हा बन बन
प्रेम जगे धरती पर सात्विक
बने धरा वृन्दावन

सबके जीवन में खिल जायें
सतरंगी  फुलवारी
सुख की उझास यूं फैले
मिटे दुःखों की अंधियारी

सभी गुरु जन को सादर नमन के साथ, बन्धुओं को सादर ,एंव कनिष्ठ जन को सस्नेह होली का अमिनन्दन एंव मंगल कामना ।

उमेश श्रीवास्तव  जबलपुर १३.०३.२०१७