शुक्रवार, 16 सितंबर 2022

शिव भोले

शिव भोले, शिव भोले हर हर
शिव भोले , शिव भोले
शिव भोले, शिव भोले हर हर
शिव भोले , शिव भोले ।

प्रलयंकारी रूप ना धर
शिव भोले शिव भोले
शिव भोले, शिव भोले हर हर
शिव भोले , शिव भोले ।

हे आदि योगी ! आदि माया
दे रही नित नव प्रलोभन
हैं प्रवंचित आज जन जन
बदलती नित नये चोले
शिव भोले, शिव भोले हर हर
शिव भोले , शिव भोले ।

तांडव कर ना रुद्र बन कर
अभयकारी शिव रूप धर
जो बढ़ रही हैं कलुषिताएं  
भस्म हेतु त्रिनेत्र खोलें
शिव भोले, शिव भोले हर हर
शिव भोले , शिव भोले ।
 
तुम आदि भी अनन्त भी
आकाश व पाताल भी
इस चर चराचर जगत के
शून्य भी साकार भी ।
आकार लो मेरे प्रभो
शिव भोले, शिव भोले हर हर
शिव भोले , शिव भोले

विध्वंस के नायक मेरे
तुम श्रृजन के आगार भी
योग निद्रा त्याग दो अब
शुभ श्रृजन शंख निनाद होले ।
शिव भोले, शिव भोले हर हर
शिव भोले , शिव भोले


संत, योगी, साधुजन
मोहित मुदित भ्रमित हैं
नीर क्षीर विवेक बुद्धि
विलुप्त सबके चित्त हैं
माया जनित आवरण
योग से कर चित्त भोले
शिव भोले, शिव भोले हर हर
शिव भोले , शिव भोले ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव
राजभवन , भोपाल
०३.३० बजे अपरान्ह
दिनांक : १६.०९.२०२२




गुरुवार, 8 सितंबर 2022

रस नाद

क्या कहूं !
मौन के स्वरों में
अनुगूंज सा,
कर्णपटल पर 
नाद,अहसास
घनघोर,
वेदना की तीव्रता
महसूसता
टूटता सा
क्यूं न 
बस चुप ही रहूं ।
क्या कहूं ?

ध्वनि के अनेकों रूप
मैने हैं देखे ,
स्वादों को भी उनके
मैनें चखा है ,
स्पर्श उसका
हर रस संजोये, 
शिराओं के शिखर पर
अनुभव किया है ।

इक नाद ने ही
ब्रम्ह से
परिचय कराया,
इक नाद का ही प्रपंच,
ब्रम्हाण्ड सारा ।

इक नाद प्राणों में जगा
जग रच गया
प्राण की किलकारियों से
जग बस गया ।

इक मधुर ध्वनि, श्रृंगार
हिय गुहा मध्य
जब गूंजी कहीं
रस रागिनी
हर प्राण को
समेट ली ।

हो समर्पित
इक दूसरे को
कर,
प्राण, तन,मन
बुद्धि अर्पित
रच रहे
इस धरा के 
प्राण सारे ।

करुण का स्वर
कसैला,
हर इन्द्रियों पर परत सा
आरोह करता
अस्तित्व ,
ज्यूं संकुचित कर ,
मांस,अस्थि मज्जा, त्वचा
जो हैं पिंजर ।
इस पिंजर के अवयवों पर
भी राज करता ।
तोड़ देता अस्तित्व के
हर अवययों को
मेट देता इस धरा से
इस गेह को ।

जब गूंजती नाद विभत्स,
बच रहना सभी ,
बुद्धि में चुभती कील सी
विलग करती आत्म से
विवेक को,
बुद्धि को चखा
सोम रस
जिस दिशा भी फेर देती
उस दिशा के हर प्राण को
ईश्वरीय कृति मानने से
रोक देती ।

हास स्वर परिहास का
द्वन्द है,
खिलखिलाहट
मुस्कुराहट
कहकहों का छन्द है ,
पर पे पर खिला 
तो क्या हास है !
स्व से जुड़े ,
तो असल परिहास है ।

भय के स्वरों में तनिक
रोमांच जोड़ो
हो सके तो इससे
गठजोड़ कर लो, 
नाद इसका 
तार दिल के जोड़ता
बस बुद्धि से किंचित
विलगाव कर लो ।

रौद्रता का नाद
गम्भीर है,
हर रसों के विध्वंस का
आभीर है , 
यह राग चाहे कुशलता
सन्धान में
चूक तनिक भी
विध्वंस करती प्राण है ।

शान्ति मोहक मनोरम
अध्यात्म है
इसके स्वरों में
ब्रम्ह का ही
वास है
सब रस इसी में
हैं समाहित,
हर प्राण का
यह ही रसिक,
इसके रसिक बन
जीवन जिओ
जीते रहो
अनुशासनों में रस रहें
तुम भी रहो
सम रस रहे
तब ही तो सरगम राग है
सरगम बिना हर स्वर
भयानक नाद है ।

क्या कहूं !
मैने चखा है
हर नाद रस को
मौन रह 
हर स्वरों से
इसलिये मौन हूं
क्या कहूं अब क्या कहूं ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव
भोपाल से छतरपुर यात्रा
महामना ट्रेन
दिनांक ०८.१०.२०२२











गुरुवार, 1 सितंबर 2022

शेर

मुसाफ़िर शायरी में ये शेर पढ़ा

हमे अपना इश्क तो एकतरफा और अधूरा ही पसन्द है..
पूरा होने पर तो आसमान का चाँद भी घटने लगता है...

जबाब देने को  कीड़ा कुल बुलाया, नज़र है 

चांद आसमां में , न घटता बढ़ता
बस देखनें का अंदाज बदल देती है तू
इश्क इक तरफा ..? है फितूर
पूछ देखो,पथ्थर में आग लगा देती है तू

प्रयास सही था या नहीं ..? कदरदानों से दाद का इंतजार होगा ।
उमेश ११. १२ . १६