बुधवार, 29 अप्रैल 2020

खुशी की तलाश



खुशी की तलाश


खोजता मैं रहा
आदि से ही तुझे,
तू बता ऐ खुशी
है छिपी तू कहां ?

धर्मों में देखा
अधर्मों में देखा,
कर्मों में देखा
अकर्मों में देखा,
दिखी तू नहीं
हर मर्मों में देखा,
खोजता मैं रहा
तू छिपी है कहां ?

रिस्तों में चाहा
वैर कर के भी ढूढ़ा,
तू छिपी ही रही
मुस्कुराती कहीं,
नीरवता में गहन
उतर कर भी देखा,
कलरव के सागर में
उतरा कर भी देखा,
दिखी तू नहीं
ऐ ,चिरन्तर माधवी ၊

मुद्रा में देखा
द्रव्यों में देखा,
धरा  के कण में
प्रासादों के शहर में,
मुकुट में , पदों में
किस जगह न देखा,
पर मिली तू नहीं
तू छिपी है कहां ?

वनों मे भी देखा
उपवनों में भी देखा,
पर्वतों में , सगर मे
सरि के लहर में,
हर नगर में , डगर में
भटकता फिर रहा
तू छिपी है कहां ,
तू छिपी है कहां ?

तन में भी ढूढ़ा
रूप- लावण्य में भी ढूढां,
मुकुन्दों,कलियों, 
फूलों में ढूढ़ा,
अनल व अनिल 
क्या छूटे कहीं,
माया के रचे
हर कण कण में ढूढ़ा,
पर कहां तू मिली
तू छिपी है कहां ?

भोगो में देखा
त्यागों में देखा,
कमनीय कली के
रागों में ढूढ़ा,
चिन्तन की धारा व
चिताओं को देखा
पर दिखी तू नहीं 
तू छिपी है कहां ?

सत में भी देखा
असत में भी ढूढ़ा,
पीड़क भी बना 
पीड़ित में भी देखा,
शासक व शासित
सभी बन के ढूढ़ा,
मिली तू नहीं 
तू छिपी है कहां ?

मै रटता रहा
पोथियाँ भी अनेको,
औ भटकता रहा 
पंथ के पंथ भी,
पर झलक ही मिली
तू मिली ही नही,
तितलियों की तरह
तू उड़ती रही,
व्याध सा मैं पीछे 
भटकता ही रहा
हाथ आई न तू
जान पाया ना तुझे ၊

भटकता हुआ आज
थक ठहरा जिस जगह,
देख कर ये लगा
ये तो जानी जगह है ,
संग ये ही तो मेरे
प्रवासों में थी
तुझे दूढ़ने के 
हर प्रयासों में थी ၊

मैं उतरा नही इस
गुहा खोह में,
यह बुलाने को निरन्तर
प्रयासों में थी,
आज देखा उतर
तो देखा तुझे,
तू तो मुझ में ही बैठी
कयासों में थी,
माया में लिपटा 
मैं भटकता रहा,
तू जगाने के मेरे
 प्रयासों मे थी ၊


उमेश कुमार श्रीवास्तव , इन्दौर
दिनांक २९.४.२० की रात २ ३० बजे



सोमवार, 27 अप्रैल 2020

गज़ल

जुल्फों की तिरी सबा से , मेरा प्यार झिलमिलाये
तेरी चश्मों की झील में , मेरी किस्ती मौज लाये ၊

रुख की मयकदा तो काफ़िर बना रही है
प्याले लब तेरे ये , मेरे होश हैं उड़ाये

मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

मैने देखा है

मैने देखा है

मैने देखा है , ईश्वर को
देव , गन्धर्व , सुर असुरों को
मैने देखा है , ईश्वर को ၊

स्वेत , हरित , नील व खाकी
वसनों को धारण कर
अथक ऊर्जा के श्रोत बने
नित कल्याण भाव का
वरण किये ,
निःस्वार्थ भटकते, 
हाथ जोड़ 
व कभी-कभी
आक्रोश झलकाती वाणी से ၊
सदगति का मार्ग बताते
अनुशासन में रहने को ၊

शुभ-त्राण, कल्याण हेतु
यदि अनिवार्य बने,
हिय पीड़ा भर
निभा रहे , स्व-जन पर ही
कि, हम रहे सुरक्षित
अृदष्य शत्रु से , जो
हर रहा प्राण है अपनों का ၊

स्पन्दनहीन नही ये,
ना ही एकाकी,
अजर अमर नहीं ये,
इनके भी हैं स्व संगी साथी,
पर 
हम सब हेतु प्राण रखे 
अपने कर में,
दे रहे अभय की राह
स्व - कुटुम्ब को
त्याग अपने ही घर में ၊

ये नायक हैं
अधिनायक हैं
ईश हमारे
देव तुल्य वंदनीय
ये गन्धर्व हमारे ၊

किंचित इनके बलिदानों का
ध्यान धरो,
पर हित में जूझ रहे
इन कर्त्तव्य पथिकों की 
कर्म व वाणी का,
सम्मान करो ၊

ये देवदूत हैं
ईश बने, हैं, रोक रहे
राष्ट्र प्राण के आगे
अपने तन को झोंक रहे ၊
जन जन के प्राणों की चिन्ता में
ना सोते हैं,
स्व पीड़ा सह,
पर पीड़ा में रोते हैं ၊

पुनः नही आयेगा 
जीवन में यह अवसर 
पुनः नही जागेगा
ऐसा सौभाग्य तुम्हारा
मानव तन में सम्मुख तेरे
है ईश खड़ा ,
रक्षा को तेरी हाथ जोड़
जगदीश खड़ा,
मान ले बात, तू भी
दर्शन कर ले,
बात मान कर इनकी,
प्राण से झोली भर ले ၊

उमेश कुमार श्रीवास्तव
इन्दौर , दिनांक २२.०४.२०








शनिवार, 4 अप्रैल 2020

मैं और तू


 मैं और तू

हूं निरखता, मैं,निरन्तर
अन्तस की गलियों में उतर ।
खोजता रहता हूं नित
हर गली हर राह पर ।

इक झलक की चाह ने
बावरा सा कर दिया
रश्मि आंखो से गई
रजनी से दामन भर दिया ।

तप ये नही ! तो और क्या ?
तू ही बता कितना तपूं
तपन की इस अगन ने 
क्या क्या न मेरा रज हुआ।

मैं हूं अलग या तो मुझे
यह झलक आ कर दिखा,
या मेरे विश्वास को
"परमात्म हूं" सच कर दिखा ၊

नित निरन्तर जूझता 
जिन्दा हूं, या हूं, जी रहा
तू ही बता , तू ईश है
पाने की तेरी राह क्या ?

जड़ नही, हूं पशु नही , 
औरस मनु सन्तान हूं
इस धरा पर आज भी 
मैं ही, तेरी पहचान हूं ၊

फिर भटकता क्यूं फिर रहा
स्वयं की ही खोज में
ये भरम क्यूं भर रहा
फिर मेरी इस मौज में ၊

आ तनिक मुझको बता
मैं पृथक क्यूं कर हुआ
आत्म मैं परमात्म तू ,फिर
योग क्यूं क्षितिकर हुआ ၊

उमेश कुमार श्रीवास्तव
दिनांक 25.04.2020
इंदौर