गुरुवार, 16 सितंबर 2021

तितलियों के पर में , जो रंग भरे हैं तूने
पक्षियों के स्वर में हैं भरी जो गूंज तूने

नदियों की निनाद कल-कल रेसम सी दे रखी है

गुरुवार, 2 सितंबर 2021

अफ़सोस

फ़ितरत में है नहीं रह सकूँ दूर तुमसे 
मजबूर हो गया हूँ, अपने 'करम' से यारो
फिर रेत की दरिया में कश्ती है आ गई
सूखी कलम हमारी तर रोशनाई के बिना
                       
  उमेश, ग्वालियर १४.०२.१४