गुरुवार, 27 जनवरी 2022

मां

हे मां ,
तेरा जन्म दिवस !
तू तो , 
अजर, अमर, अविनाशी है ।
आत्म-नीर बिन्दु सम
रही शाश्वत 
साकार जगत की काशी है ।

जन्मदात्रि तू 
अखिल विश्व की
ना जन्मी तू
अवतरित हुई ।
हम पायें सुरभित वसु
ले ब्रम्ह रूप पल्लवित हुई ।

जब जब धरा पर आये हम
तेरे ही अंकों में खेले
तेरे ही आंचल छांव तले
हर शीत , ग्रीष्म, बरखा झेले।
हर ज्ञान,ध्यान, विज्ञान हमें
तूने ही अर्पित किया सदा
इक माटी के लोंदे को
मनु अंश बना तारा है सदा ।

हर प्राण तुझी से
उत्सर्जित
हर ज्ञान तुझी से
आलोकित
इस जीवन के हर क्षण कण का
आमोद तुझी से आलोकित ।

अवतरण दिवस है यह तेरा
जन्म दिवस क्यूं मैं मानूं 
जननी बिन जग क्या संम्भव ?
ब्रम्ह तुझे क्यूं ना मानूं
आकार व्रम्ह ने दिया स्वयं को
तू ब्रम्ह रूप में आई है,
हूं अंश तेरा,मैं भी अविनाशी
बस यही खुशी मनाऊं मैं ।

तेरी छाया अनवरत रहे,
स्नेह,दुलार आशीष लिये
तू स्वस्थ्य और सानन्द रहे
हर रोम मेरा यह चाह लिये ।

आपके स्नेहाकांक्षी
उमेश कुमार श्रीवास्तव, 
श्रीमती अनुपमा श्रीवास्तव, 
शिवांशु श्रीवास्तव
शिवपुरी (म०प्र०)

हसरते चाह

हसरते चाह

तुमको सुकूं मैं दे सकूं'
यूं बेसुकूं रहता हूं मै
गुल खिलें रुख्सार पे
यूं दर्दे ख़ार चुनता हूं मैं

तुम खिल के मुस्कुरा सको
यूं गम तेरे चुनता हूं मैं
तुम सबा बनी बहा करो
यूं खिज़ा के संग पलता हूं मैं

मायूसियत कभी किसी 
मोड़ तुझे न आ  मिले
हर मोड़ पे तेरी राह के 
यूं मुंतजर रहता हूं मैं

मेरी हर खुशी तेरे दर पे है
तेरे गम का आसरा हूं मैं
इक तब्बस्सुम चाह ले
यूं जला  करता हूं मैं

तू फकत मुस्कराए जा
मेरे अश्क पे तू कभी न जा
मेरे गम मुझे अजीज़ हैं
यूं राह इस चलाता हूं मैं

तेरी जिन्दगी का नाख़ुदा
बस यूं ही नही हूं मै बना
तेरे रंजो गम वो दर्द की.
यूं इम्तहां करता हूं मैं

ये ही फकत है आरजू
देखूं तुझे हर मोड़ पे
तू मुझे तकती ज्यूं सदा
यूं ही तुझे मैं तका करूं ।

उमेश श्रीवास्तव २७.०१.२०१७ जबलपुर

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