मंगलवार, 17 सितंबर 2019

गमन - आगमन

 गमन - आगमन

जन्म से मृत्यु,
यात्रा ,
प्रत्यक्ष का साक्षात्कार ,
जन्म से पूर्व
मृत्यु के पश्चात
अज्ञात का अंधकार ,
पर्ण पात, है ज्ञात
आगमन व गमन ,
जिस धरा से प्रस्फुटित हो प्रत्यक्ष,
उस धरा का चुम्बन ,
शिखर से उतर ,
हो विलीन उस धृ-लोक में ,
जिसका था कभी अंश ၊
पल्लव से पर्ण
पर्ण से रजकण
रज से रस
रस से रससार बन
पुन: पल्लवित  ,
क्रिया निरन्तर
अनवरत ၊
ग्रीष्म, सर्द
झंझावत बरखा ,
अवरोध कहां ၊
सुख-दुःख ?
प्रश्न कहां ?
नियमबद्ध , कर्मचक्र ၊
गमन ,आगमन
जन्म , जरा , मृत्यु
समदर्शी ,
परमात्म जगत का
कहां, कभी
रहा दखल ၊
उमेश , १७.९.१९ सिंगरौली

सोमवार, 16 सितंबर 2019

रूबाई

रूबाई


गम-ए-दिल को गमजदा गमख्वार चाहिए ,
गमगीनियों की गली में ग़जरा-ए-गुलनार चाहिए ,
तकदीर कोई सै नही राहे गमगीनियां ,
सबा के झोंके सी, बस इक नई बयार चाहिए ၊
........................ उमेश , १७.९.१९

बुधवार, 4 सितंबर 2019

अबूझ आकांक्षा

अबूझ आकांक्षा

उत्कंठा
मुक्ति के ,
अनुभूति की
भटकाती सदा ၊
यह प्रकृति है,
मायावी ၊
रची ब्रम्ह की ၊
आलिप्त करती सदा,
हर कण के
कणों को भी ၊
निर्लिप्त केवल
ब्रम्ह ၊
मुक्ति
स्वातन्त्र है ,
गेह से ၊
इन्द्रियों से ,
पंचवायु से ,
मन ,बुद्धि, दंभ से
आधीन जिनके
उत्कंठा पालता ,
प्राणी ၊
अनुभूति
अन्तस का
नाद है ,
निःस्वर
भेदता है
हर क्षेत्र , क्षेत्रज्ञ को
कर सके प्रवेश
विरला इस
गुह्य क्षेत्र में
जो रचता ब्रम्ह है ၊
मुक्ति स्वरूप ,
ब्रम्ह बनने की चाह,
युगों से,
देती रही धरा पर,
अबूझ प्राणियों के,
झुण्ड के झुण्ड ၊
कुछ देवत्व पा
इठलाने लगे
कुछ विदेह बन
इतराने लगे
कुछ दानवों के रूप में
निर्मोहिता का
नग्न नृत्य
धृ पर चतुर्दिक
दिखाने लगे ၊
पर हो सके ना
निर्लिप्त ၊
मुक्ति का प्रथम पग,
डूबे आकण्ठ
मायावी सरोवर
नीर में ၊
निर्लिप्तता
यूं कि ज्यूं
पुण्डरीक ၊
कीचक और
जीवन सार जल से भी ,
मुक्तता का
कराता आभास
उसमें ही आकंठ डूब ၊
रहा सदा
अति दुरूह
पग उठाना
प्रथम ၊
आकांक्षाएं, अभिलाषाएं
चाहे जितनी पाल लो
दलहीज से
बाहर निकलने को ,
यदि कोई उद्धत न हो,
क्या करेंगी
उत्कट ईप्सा
यदि पगों को
मंजिलों की
चाह न हो ၊
मायावी ऐश्वर्य
जाल ,
फंसा रखता सदा
गेह, मन ,बुद्धि को ၊
आत्म तत्व से विलग
सुख सागरी जल में
तिरते हम,
बस सोच कर मुक्ति के
आनन्द को,
पालते, लालसा का
का भ्रूण हैं ၊
और भौतिक सुखों की चाह में
करते निरन्तर,
भ्रूण वध ၊
मुक्त कर स्वयं को
स्वच्छन्द बन ၊
उमेश , इन्दौर, दिनांक ४ - ५ . ०९. १९



मंगलवार, 3 सितंबर 2019

क्षणिका

 क्षणिका

रिश्ते कोमल कलियां हैं ,सींच इन्हे न तोड़ इन्हे ।
महक बचा ले जीवन की,सर्वस्व लुटा कर जोड़ इन्हे ।
...उमेश ०३.०९.१६ जबलपुर