मंगलवार, 25 नवंबर 2025

संताप आलाप (प्रलय की ओर )

भटकते तन
उड़ते मन, चिन्तन
आत्मा का विलाप
अनहद विवर में
संताप ।

प्रकृति , पुरुष
कृष कुरूप
प्राणी,
कैसी सन्तति !
नही चिन्तन !
चिन्तित 
धाता पुरुष ।

अतिरेक शोर
रोर नाद
अन्तस तक
देता झकझोर 
अति घात
पिंजर के पोर पोर
हो जाते निस्पात ( विनाश )
रक्त - पानी
धमनियां शिराएं
शुष्क नालियों सम
पीड़ित घनघोर ।

किस दिशा जा रहे
प्राण
प्रण विकास का
या विनाश
प्राण का
प्राणीयों से
प्राण शक्ति
पतित पात

कीचक बने 
हूहू कर झूमते
निष्प्राण तन
आत्महीन मन
अचिंतित चिन्तन
संकुचित चितवन
मोहित मंद 
उलट दिशा में 
गमन
धरा धर धैर्य 
धीर से अधीर 
फिर जग कण कण
विस्तृत से संकुचन
ब्रम्हाण्ड ब्रम्ह 
पुन अण्ड ।

अनहद : 
  • आघात रहित नाद: यह एक ऐसी आंतरिक ध्वनि है जो किसी बाहरी आघात (जैसे किसी वस्तु से टकराना) के बिना ही उत्पन्न होती है। यह ध्यान और योग की गहराइयों में सुनाई देने वाला एक दिव्य संगीत है।
उमेश कुमार श्रीवास्तव
लखनऊ, 
दिनांक : २५.११.२५









रविवार, 23 नवंबर 2025

गज़ल : जिन्दगी परखने को . . .

जिन्दगी परखने को नज़र चाहिए
खुद को परखने को जिगर चाहिए ।

जिन्दगी फलसफा है,मौत की है डगर रूख रुहानी  लिये इसकी कदर चाहिए ।

चंद लम्हे बहोत सीखने को मगर
जिन्दगी भी है कम गर बशरह चाहिए । (अच्छी सूचना देने वाला )

गलतियां दूसरों की, हैं दिखती बहोत
देखने को अपनी, ख़ुदाई नजर चाहिए ।

ढूढ़ पाती जो नज़र आपको आप में ही
निगाहों मे बसी, बस वो नज़र चाहिए ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव
त्रिवेणी एक्सप्रेस
दिनांक : २३. ११. २५
9131018553