बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

छँटी जो माया तब दरश है पाया

छँटी जो माया तब दरश है पाया
प्रियतम की काया देखने भटका किए मगर
पाया जो प्रियतम को पास तो तम छटने लगे
हमने उन्हे देखा मगर आँखे बंद कर 
ऐसे दरश हो गये कि घड़ियाल बज उठे
हमने उन्हे सुना मगर कानो को बंद कर 
ऐसी बजी सरगम कि हर दीप जल उठे
हमने उन्हे पुकारा मगर रसना को बंद कर 
ऐसा घुला बदन की इकसार हो गये
हमने उन्हे सूँघा मगर रन्ध्रो को बंद कर
ऐसी गमक भरी कि प्राण वृंदा-वन हो गये
हमने उन्हे छुआ मगर अस्तित्व को मिटा
ऐसा हुआ साकार कि हम ब्रम्‍ह हो गये
आत्म चित्त आकार प्रवृति बुद्धि अहंकार
"
हम" के ये ताने-बाने पा उसे विस्मृत हो गये
उमेश कुमार श्रीवास्तव (१०.०२.२०१४)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें