शनिवार, 4 जनवरी 2020

ऐ, "छोटी तुम"

तेरी यादों के साये से
क्यूं, कैसे आजाद करूं 
तू ही कह दे, अय छोटी मेरी
तुझे न कैसे याद करूं ၊

जब भी उठता आंखे मलते
सुबह सबेरे रात बिता
बिखरे बालों में हाथ फिरा तू
देती अपना प्यार जता ၊

चेहरा धोऊं केश भिगो जब
टकटकी लगाये तकती तू
अपने गालों को सटा के उनसे
खड़ी वहां हो जाती तू ၊

जैसे जैसे तैयार मैं होता
सुबह सैर को जाने को
तुम भी संग संग साथ ही होती
तैयार , साथ निभाने को ၊

पग बाहर ज्यूं रखता हूं मैं
इक स्वर स्वागत करता है
"गुड मार्निंग जान" उद्‌घोष
मधु सम कानों में भरता है ၊

अब एकाकी चांद गगन में
तीनों तारों से बिछड़ गया
सब रीते हैं, चुके खड़े हैं 
अर्थ ही उनका बिगड़ गया ၊

सुबह की ठंडक कानो में भरती
हाथों के पंजे सुन्न पड़े
कौन कहे अब बांधो मफलर
नहीं तो कैप उतार रहे ၊

सूनी राहें , एकाकी डग हैं
खो गया मनोरम सैर सबेरा
तुम रूठे, जग कण रूठा है
खुशियों ने त्यागा अब ये डेरा ၊

सुबह भी होती साम भी होती
रातें भी हैं आती जाती
पर सांसों में महक तुम्हारी
तन्हा मुझको हैं तड़पाती ၊

नहीं मै कहता, तुम खुश होगी
दर्द तुम्हे भी बेहद होगा
प्रेम व्यथा का, जख्म ही ऐसा
हर अंग तेरा भी घायल होगा ၊

मेरे हित चिन्तन में तुमने
अवरोध स्वयं ही वरण किया
खुद की , मेरी प्रेम डोर को।
लक्ष्मण रेखा बना दिया ၊

तुम खुश रहना, मुझे जान खुश
बस यही मेरी अभिलाषा है
तुम सांसे हो, मेरे तन की
नित, बनी रहोगी , ये आशा है ၊

उमेश ,दि० ०५.०१.२०२०, जबलपुर से इन्दौर यात्रा ओव्हर नाइट एक्स. मक्सी जंक्सन


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