गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021

विरोधाभाषी दर्शन

 विरोधाभाषी दर्शन

 

कागज की नावों को मैने 

तूफां से लड़ते देखा है ,
मजबूत दरियाई बेड़ों को 
तट पर ही डूबते देखा है ၊

मैने देखा है , इक दीपक
अधियारों से टकरा जाता है ,
रवि तेज बने अनेकों को
पर , तम में ही डूबे देखा है ၊

मैने देखा है उन कर्णों को
जिनकी, ख़ुद ना रही बिसात कोई
पर क्षद्मी भामासाहों को भी
दुनिया को छलते देखा है ၊

देखा है ऐसे भगीरथी भी
जो जन में जीवन खपा गये
ऐसे भी देखे परजीवी
जो सेवा से जन को पचा गये ၊

यह जग है,जगमग करता है
आंखों की ज्योति सजग रखना
माया की नगरी में है जीना
जग की आखों को तोल के रखना ၊

उमेश श्रीवास्तव
नव जीवन विहार कालोनी
विन्ध्य नगर , सिंगरौली
दिनांक ९.०३.२०२१

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें