गुरुवार, 24 नवंबर 2022

गज़ल : इस गली भी कभी आप आया करें

इस गली भी कभी आप आया करें ,
नज़र यूं ना हमसे चुराया करें ।
गुफ्तगूं- ए- ज़ुबा हो न हो , 
गुफ्तगू-ए-नज़र कर जाया करें ।

तब्बस्सुम लबों पर सजे ना सजे, 
साज़-ए-जिगर बजे ना बजे
आ जुल्फे जरा लहराया करें, 
चश्मों को बोसे कराया करें ।

आपकी मसरूफियत , हमें है पता
आप मगरूर हैं, है ये भी  पता
ये जवानी के दिन बस गिने चार हैं
मुंतज़र हमें यूं   न कराया करें ।

आपकी शोखियां कर रही जुल्म हैं
तड़पते जिगर को दे रही गुल्म हैं
सुकूं पा जाये दीदार कर ये
कुछ ऐसे जतन कर जाया करें ।

है कदर हुश्न की नजर-ए-इश्क में 
फ़ना हो रहा इस जमाने जो
न परदों में खुद को छिपाया करें
पास आने की जहमत उठाया करें  ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव
राजभवन, भोपाल
दिनांक : २९ . १२ . २०२२






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