आ रहे
हैं राम
संवर जा रे मानव
हुआ नया भिंसार
सम्हल जा हे मानव ।
रामराज्य को ना देखा पर
रामराज्य पर आस टिकी
ठुमक ठुमक कर आते राम
अधरों पर मुस्कान टिकी ।
आओ सब मिल स्वागत कर लें
नव प्रभात की बेला में
रामराज्य है मधुरिम आभा
हर सपनों के रेला मे ।
मांज मांज कर हर मन तन को
पशु से मानव कर ले तू
नव युग के इस सन्धिकाल में
संग राम के हो ले तू ।
नव वर्ष नहि नव विहान है
चेतनता का आलिंगन कर
अगवानी कर रामराज्य की
मुस्कानों से जीवन भर ।
उमेश कुमार श्रीवास्तव
राजभवन भोपाल
दिनांक ०१ . ०१ . २०२४
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