मंगलवार, 16 दिसंबर 2025

मदान्ध

मदान्ध

मद बोझ
चाहे पद, बल, धन
या रूप यौवन का हो
सबसे काट देता है
जिस सिर चढ़ा
मद कनक बन
मानव की योनि से
उसे वह बांट देता है ।
जिन्दगी जीता नही वह
उसे जी लेती है जिन्दगी
इच्छाओं कीअसीमता
में चिंतित मदान्ध
क्षण प्रति क्षण
सुलगती चिता का
साथ देता है।

उमेश कुमार श्रीवास्तव
लोक भवन , भोपाल
दिनांक : १७.१२.२०२५

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