रविवार, 20 दिसंबर 2020

सद्पथ

सद्पथ

 

अज्ञात , ज्ञात हो

भूत बन रहा
जिस क्षण को हम 
भोग रहे
प्रारब्ध बन रहा
हर कर्म हमारा
नव भविष्य निर्माण हेतु ၊


उत्साह,उमंग
प्रेम-तरंग
यदि
हर क्षण की ये
थाती हो
हर कर्म हमारा,
ईंट व गारा,
नव आगात
कल्याण हेतु ၊

आज सींचते 
जिन बीजों को
कल के वृक्ष वही होंगे
क्या बोओगे
बबूल बीज तुम ?
आम्र कुंज 
पहचान हेतु ၊

प्रेम धरा है
कर्म बीज है
उत्साहपूर्ण सदकर्म
करो ,
रश्मि रथी बन
अंध पथों में
प्रेम प्रभा
आह्वान हेतु ၊

उमेश श्रीवास्तव
दिनांक २२.१२.२०२०
केराकत , जौनपुर प्रवास




गुरुवार, 17 दिसंबर 2020

ग़ज़ल. करते हो प्यार कितना अहसास कराइये

ग़ज़ल

करते हो प्यार कितना अहसास कराइये
गुल बन ना बैठिए, ज़रा, खिल तो जाइए

जल जाएगा ये दिल, जो रीते रहे जलद
बरखा की बन बदरिया, ज़रा , झूम जाइए

सब कुछ किया हमने,मगर,जगा सके न हम
खुद अपने प्यार को ज़रा, अब तो जगाइए

तुमको हंसाने के लिए रोना हमे क़ुबूल
मेरे लिए भी ज़रा , कुछ कर दिखाइए

लुट जाएगी बगिया मेरी , यूँ जी न सकेंगे
जां मेरी जानम मेरी , कुछ जान जाइए

टूटते बिखरते रहे अब तलक तो हम
कुछ सुकू मिले मुझे , दामन बिछाईए

करते हो प्यार कितना अहसास कराइये
गुल बन ना बैठिए, ज़रा, खिल तो जाइए

                     उमेश कुमार श्रीवास्तव

रविवार, 13 दिसंबर 2020

ग़ज़ल. कहाँ से चला था कहाँ आ गया हूँ

ग़ज़ल


कहाँ से चला था कहाँ आ गया हूँ
खड़ी तंग गली में समा मैं गया हूँ

इधर भी उधर भी नज़ारे नहीं अब
नीचे ज़मीं ऊपर सितारे नही अब

दिल तो है बच्चा, मगर खो गया मैं
कशिश में किसी की हूँ सो गया मैं

ना भूला हूँ बचपन के खेलों की दुनियाभर
ना भुला हूँ अरमां तमन्ना की दुनिया

वो गलियाँ अभी भी रूहों में रची हैं
लटटू की डोरी उंगलियों में फसी है

बिखरी है अब तक वो पिट्टूल की चीपे
डरी थी जो गुड़िया उसकी वो चीखें

वो बारिस की, कागज की किश्ती हमारी
चल रही बोझ ले अब भी जीवन की सारी

वो अमवा की बगिया वो पीपल की छइयां
नदिया किनारों की वो छुप्पम छुपैया

सभी खो गये हैं उजालों में आ के
तमस की नदी के किनारों पे आ के

वो माँ की ममता भरी डाट खाना
आँखों से पिता की वो तरेरा जाना

कमी आज सब की खलती हमे अब
गुम हो गये इस भीड़ में हम जब

ये तरक्की ये सोहरत ये बंगला ये गाड़ी
वो माटी के घरोदे वो पहिए की गाड़ी

बदल लो इनसे सभी मेरे अपने
नही चाहिए छल भरे, छलियों के सपने

न लौटेगा अल्हड़ वो बचपन हमारा
सफ़र है सहरा, है सीढ़ियों का  सहारा

आँखो ने सहरा के टीले दिखाए
जहाँ है दफ़न मेरे बचपन के साए

चलता रहा छोड़ बचपन की गलियाँ
सकरी हो चली हर ख्वाहिशों की गलियाँ

अब  तो यहाँ दम घुटने लगा है
नई ताज़गी से साथ छूटने लगा है

भटकते भटकते कहाँ फँस गया हूँ
कफस में जाँ सा धँस मैं गया हूँ

कहाँ से चला था कहाँ आ गया हूँ
खड़ी तंग गली में समा मैं गया हूँ । ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव, 

जबलपुर दिनांक २८.०६.२०१६


शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

एक शेर के जवाब में दो शेर

मुसाफ़िर शायरी में ये शेर पढ़ा किसका है न मालूम

हमे अपना इश्क तो एकतरफा और अधूरा ही पसन्द है..
पूरा होने पर तो आसमान का चाँद भी घटने लगता है...

जबाब देने को  कीड़ा कुल बुलाया, नज़र है तो जवाब दो शेरों से दिया

१.  चांद आसमां में , न घटता बढ़ता
     बस देखनें का अंदाज बदल देती है तू ၊
     इश्क इक तरफा ..? है फितूर
     पूछ देखो,पथ्थर में आग लगा देती है तू ၊

क्योंकि : - 

२. कदर - ए- इश्क आती कहां है हुश्न को 
     खुद़ पर गुरुर करता रहा है आज तक ၊
     इश्क पूरा कहां है हुश्न बिन
     सबब सदियों से रहा इक तरफा - ए- इश्क
.
प्रयास सही था या नहीं ..? कदरदानों से दाद का इंतजार होगा ।

उमेश श्रीवास्तव

बुधवार, 9 दिसंबर 2020

दो शेर

                       १
वो लिखते हैं लिख कर मिटा देते हैं ,
न जाने क्या है जो दिल में छिपा लेते हैं ၊
                            २
ख्वाब फूल हैं , न छिपा किताबों में तू
ज़र्द हो, दर्द की, दास्तां सुनने को ၊
 💐
                            उमेश ... ८.१२.२०

मंगलवार, 8 दिसंबर 2020

प्रेम नहीं होता तन से, यह मन की थाती होती है ,
स्नेह तरल घृत साथ रहे, तन जलती बाती होती है ၊

उमेश : ९.१२.२० शिवपुरी

सोमवार, 7 दिसंबर 2020

दो शेर

                       १
वो लिखते हैं लिख कर मिटा देते हैं ,
न जाने क्या है जो दिल में छिपा लेते हैं ၊
                            २
ख्वाब फूल हैं , न छिपा किताबों में तू
ज़र्द हो, दर्द की, दास्तां सुनने को ၊
 
                            उमेश ... ८.१२.२०