रविवार, 13 मार्च 2022

गज़ल , मैं मलंग क्या करूं


                  गज़ल

मैं मलंग क्या करूं ,जो खुशमिजाज हूं,
सोचते सब मुझे,तकलीफ़ नहीं कोई ।

बदगुमानियां ना करा ,तब्बस्सुम लिये चेहरे
दर्द की मेरे ,कोई परवाह नहीं करता ।

खुदगर्ज ना बन सका, बीती जिन्दगी,
खुदगर्ज कह मुझे, सदा, सताता ये जहां ।

ख्वाब सा हूं जी रहा ,लोगों के बीच मैं,
तकदीर ख्वाब की यही, जग, भूलता जहां ।

था मलंग ,हूं मलंग ,मलंग ही रहूं 
रब से यही तकदीर, मैं, मांगता सदा ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव 
वाराणसी , दिनांक १३. ०३. २०२२

शनिवार, 12 मार्च 2022

होली

होली के रंग सब के संग

होली के रंग में
रंगीली उमंग में
आपका भी साथ हो
दिलों की ही बात हो
नयनों में प्यार हो
रंगों की बहार हो
हाथों में गुलाल हो
चेहरे सब के लाल हों

फागुनी बयार में
सुनहरी एक तान हो
झूमते बदन के संग
खिलती मुस्कान हो

यार हो प्यार हो
दुलार ओ सत्कार हो
जिन्दगी की रंगीनियों की
खुली इक दुकान हो

बांटिये खुले खुले
बन्द न कोई प्राण हो
प्यार भरे रंग सब
न दिल में कोई त्राण हो

हरे नीले पीले के संग
गुलाबी भी श्रृंगार हो
दिलों में भरे उंमग
लाली लिये प्यार हो

रिस्तों की खटास पर
मिठाइयौं की मार हो
मिटा दो खटास सब
होली की पुकार हो

गले लगा प्रिये सभी
रंग दो सभी चुनर
न हो अलग थलग कोई
बस प्यार की खुमार हो

आओ खेले होली हम सब
राधा कान्हा बन बन
प्रेम जगे धरती पर सात्विक
बने धरा वृन्दावन

सबके जीवन में खिल जायें
सतरंगी  फुलवारी
सुख की उझास यूं फैले
मिटे दुःखों की अंधियारी

सभी गुरु जन को सादर नमन के साथ, बन्धुओं को सादर ,एंव कनिष्ठ जन को सस्नेह होली का अमिनन्दन एंव मंगल कामना ।

उमेश श्रीवास्तव  जबलपुर १३.०३.२०१७

गुरुवार, 27 जनवरी 2022

मां

हे मां ,
तेरा जन्म दिवस !
तू तो , 
अजर, अमर, अविनाशी है ।
आत्म-नीर बिन्दु सम
रही शाश्वत 
साकार जगत की काशी है ।

जन्मदात्रि तू 
अखिल विश्व की
ना जन्मी तू
अवतरित हुई ।
हम पायें सुरभित वसु
ले ब्रम्ह रूप पल्लवित हुई ।

जब जब धरा पर आये हम
तेरे ही अंकों में खेले
तेरे ही आंचल छांव तले
हर शीत , ग्रीष्म, बरखा झेले।
हर ज्ञान,ध्यान, विज्ञान हमें
तूने ही अर्पित किया सदा
इक माटी के लोंदे को
मनु अंश बना तारा है सदा ।

हर प्राण तुझी से
उत्सर्जित
हर ज्ञान तुझी से
आलोकित
इस जीवन के हर क्षण कण का
आमोद तुझी से आलोकित ।

अवतरण दिवस है यह तेरा
जन्म दिवस क्यूं मैं मानूं 
जननी बिन जग क्या संम्भव ?
ब्रम्ह तुझे क्यूं ना मानूं
आकार व्रम्ह ने दिया स्वयं को
तू ब्रम्ह रूप में आई है,
हूं अंश तेरा,मैं भी अविनाशी
बस यही खुशी मनाऊं मैं ।

तेरी छाया अनवरत रहे,
स्नेह,दुलार आशीष लिये
तू स्वस्थ्य और सानन्द रहे
हर रोम मेरा यह चाह लिये ।

आपके स्नेहाकांक्षी
उमेश कुमार श्रीवास्तव, 
श्रीमती अनुपमा श्रीवास्तव, 
शिवांशु श्रीवास्तव
शिवपुरी (म०प्र०)

हसरते चाह

हसरते चाह

तुमको सुकूं मैं दे सकूं'
यूं बेसुकूं रहता हूं मै
गुल खिलें रुख्सार पे
यूं दर्दे ख़ार चुनता हूं मैं

तुम खिल के मुस्कुरा सको
यूं गम तेरे चुनता हूं मैं
तुम सबा बनी बहा करो
यूं खिज़ा के संग पलता हूं मैं

मायूसियत कभी किसी 
मोड़ तुझे न आ  मिले
हर मोड़ पे तेरी राह के 
यूं मुंतजर रहता हूं मैं

मेरी हर खुशी तेरे दर पे है
तेरे गम का आसरा हूं मैं
इक तब्बस्सुम चाह ले
यूं जला  करता हूं मैं

तू फकत मुस्कराए जा
मेरे अश्क पे तू कभी न जा
मेरे गम मुझे अजीज़ हैं
यूं राह इस चलाता हूं मैं

तेरी जिन्दगी का नाख़ुदा
बस यूं ही नही हूं मै बना
तेरे रंजो गम वो दर्द की.
यूं इम्तहां करता हूं मैं

ये ही फकत है आरजू
देखूं तुझे हर मोड़ पे
तू मुझे तकती ज्यूं सदा
यूं ही तुझे मैं तका करूं ।

उमेश श्रीवास्तव २७.०१.२०१७ जबलपुर

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मंगलवार, 28 दिसंबर 2021

नूतन अभिनन्दन "नए वर्ष"

नूतन अभिनन्दन "नए वर्ष"

नूतन अभिनन्दन "नए वर्ष"  
वही रश्मि औ वही किरण है 
वही धरा औ वही गगन है 
वही  पवन है नीर वही  है 
वही कुंज  है वही लताएँ 

पर्वत सरिता तड़ाग वही हैं 
 वन आभा श्रृंगार वही है 
प्राण वायु औ गंध वही है 
भौरो  की गुंजार वही है 

क्या बदला है कुछ,नव प्रकाश में 
ना ढूंढो उसको बाह्य जगत में 
वहाँ मिलेगा कुछ ना तुमको 
डूबो तनिक अन्तःमन में 

क्या कुछ बदला है मन के भीतर ?
जब आये थे इस धरती पर 
क्या वैसा अंतस लिए हुए हो ?
या कुछ बन कर ,कुछ तने हुए हो !

अहंकार , मदभरी लालसा 
वैरी नहीं जगत की  हैं यें  
यही जन्म के बाद जगी है 
जो वैरी जग को ,तेरा कर दी है 

यदि विगत दिवस की सभी कलाएँ 
फिर फिर दोहराते जाओगे 
नए वर्ष की नई किरण से 
उमंग नई  क्या तुम पाओगे 

जब तक अन्तस  अंधकूप है 
कहाँ कही नव वर्ष है 
अंधकूप को उज्जवल कर दो 
क्षण प्रतिक्षण फिर नववर्ष है 

हर दिन हर क्षण, जो गुजर रहा है 
कर लो गणना वह वर्ष नया है 
हम बदलेंगे  युग बदलेगा 
परिवर्तन ही वर्ष नया है 

गुजर रहे हर इक पल से 
क्या हमने कुछ पाया है 
जो क्षण दे नई चेतना 
वह नया वर्ष ले आया है  

मान रहे नव वर्ष इसे तो 
बाह्य जगत से तोड़ो भ्रम 
अपने भीतर झांको देखो 
किस ओर  उझास कहाँ है तम 

अपनी कमियां ढूढो खुद ही 
औरो को बतलादो उसको 
बस यही तरीका है जिससे 
हटा सकोगे खुद को उससे 

सांझ सबेरे एक समय पर 
स्वयं  करो निरपेक्ष मनन 
क्या करना था क्या कर डाला 
जिस बिन भी चलता जीवन 

कल उसको ना दोहराऊंगा 
जिस बिन भी मैं जी पाऊंगा 
आत्म शान्ति जो दे जाए मुझको 
बस वही कार्य मैं दोहराऊंगा 

 राह यही  नव संकल्पो की 
लाएगी वह  अदभुत हर्ष 
तन मन कि हर  जोड़ी जिसको 
झूम कहेगी नया वर्ष 

आओ हम सब मिलजुल कर  
स्वागत द्वार सजाएं आज 
संकल्पित उत्साहित ध्वनि से 
नए वर्ष को लाएं आज 

   उमेश कुमार श्रीवास्तव

शनिवार, 11 दिसंबर 2021

शेर

मुसाफ़िर शायरी में ये शेर पढ़ा

हमे अपना इश्क तो एकतरफा और अधूरा ही पसन्द है..
पूरा होने पर तो आसमान का चाँद भी घटने लगता है...

जबाब देने को  कीड़ा कुल बुलाया, नज़र है 

चांद आसमां में , न घटता बढ़ता
बस देखनें का अंदाज बदल देती है तू
इश्क इक तरफा ..? है फितूर
पूछ देखो,पथ्थर में आग लगा देती है तू

प्रयास सही था या नहीं ..? कदरदानों से दाद का इंतजार होगा ।
उमेश ११. १२ . १६

शेर

कदर - ए- इश्क आती कहां है हुश्न को 
खुद़ पर गुरुर करता रहा है आज तक
इश्क पूरा कहां है हुश्न बिन
सबब सदियों से रहा इक तरफा - ए- इश्क
       उमेश