रविवार, 13 मार्च 2022

गज़ल , मैं मलंग क्या करूं


                  गज़ल

मैं मलंग क्या करूं ,जो खुशमिजाज हूं,
सोचते सब मुझे,तकलीफ़ नहीं कोई ।

बदगुमानियां ना करा ,तब्बस्सुम लिये चेहरे
दर्द की मेरे ,कोई परवाह नहीं करता ।

खुदगर्ज ना बन सका, बीती जिन्दगी,
खुदगर्ज कह मुझे, सदा, सताता ये जहां ।

ख्वाब सा हूं जी रहा ,लोगों के बीच मैं,
तकदीर ख्वाब की यही, जग, भूलता जहां ।

था मलंग ,हूं मलंग ,मलंग ही रहूं 
रब से यही तकदीर, मैं, मांगता सदा ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव 
वाराणसी , दिनांक १३. ०३. २०२२

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें