बुधवार, 26 जुलाई 2023

हूं अचम्भित देख कर
अट्टालिकाओं मे रुदन
जर्जरित नीड़ मे
खिलखिलाते चेहरे देख कर ।



सोमवार, 17 जुलाई 2023

प्यास तेरी


दिनांक 14.07.2023

कब से ताक रहा हूं तुझको
उमंग कोपलें साथ लिये
आओगे मधुमास संग ले
मकरंद मधुर कुछ खास लिये ।

स्वर लहरी की मधुर रागनी
कर्णपटल पर आ मुस्काई
रिमझिम रिमझिम रुनझुन रुनझुन
ज्यूं पावस ने मृदंग बजाई ।

हृदय द्वार पर बैठा पपिहा
ताके स्वाती बून्द एक बस
तर तन सारा मन झूर है
देख दामिनी भी मुस्काई ।

शीत लहर ले पवन बावली
आई अंतस दाह मिटाने
स्वास प्रश्वास की ज्वाला में
अश्रुनीर बन लगी जलाने ।

विरह योग सुख-दुःख का है
तभी ताकता है यह जीवन
यदि दुःख होता सुख ना होता
हठ में पड़ता क्यूं यह जीवन ।

सुख हो दुःख हो या हो दोनो
आश दरस की कभी मिटे ना
हूं बैठा यूं पाषाण मूर्ति सम
झलक तेरी, ये, दृग चूकें ना ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव
दिनांक १४ .०७ . २०२३
      राजभवन
.      भोपाल













बुधवार, 1 फ़रवरी 2023

तिरछी चितवन ना तको
हे सुलोचनी नारी
हो घायल यदि चलबसा
कहां करोगी वार

नयनों की मुस्कान ये
रचती सुमधुर छंद 
वीणा की स्वर लहरि सी
झंकृत हिय मकरंद

पलकें तेरी उठ रही
बैठे हिय आगार
मध्य इन्हे रोको तनिक
प्राण करें अभिसार
- - - - - - - -
कृष्ण कौशेय रोम से 
सजे नयन के द्वार
तनिक उनींदे ऊघड़े 
तड़पाये नित नार ।

तनिक झटक वह शीश को
मटकाती जब अक्षि
तड़प तड़प नर गिर मरें
ज्यूं तड़पाये दुर्भिक्ष 
. - - - -
नयना भरे सोमरस 
है कम्बु ग्रीवा में वास  ( शंख )
अधर चसक में छलकते
कहो ? बुझा लूं प्यास ।

मीन बसे है नीर में
नीर बसे इत मीन
दृग तेरे अय चंचला
दुति सदृष्य गतिशील ।

अरुण मिला है क्षीर में
या सिन्दूरी नवनीत
कपोल तेरे अय सुन्दरी
कर चुम्बन हूं अभिजीत ।

भँवर तेरे कपोल के
भ्रमित करें चित चित्त
बूड़े बिना न रह सके
हो मृदु कठोर प्रवृति ।
-- - - -
अलसायी आंखें अधखुली
भेद भरे भरमार
रति चित चितवन में भरे
लुब्ध करे ये नारि


केश खुले हहराय रहे
दृग डोर तनिक अलसाय रहे
अधरों के चसक असार हुए
कुच गंड तनिक रतनार हुए
उरु तुंदी अरु स्कन्ध थके
भग ओष्ट तनिक मुकुलित स्मित
रक्तिम रक्तिम नीर
रैन गई मरदन तरजन 
क्यूं रतिराज तेरे भरतार रहे


निशि रैन विभावरी
मुंहजोरी ललितमा ओढे रहे

मंगलवार, 24 जनवरी 2023

काम , क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार ( मद ) एंव मत्सर : ईर्ष्या: छः विकार

तन हमारा है समन्दर
लहर इसकी,इन्द्रियां हैं
मन भंवर

शनिवार, 21 जनवरी 2023

निराशीः

नहीं चाहिए जग से कुछ भी, नही रही भोग अभिलाषा
नही कामना, इच्छा कोई, काम वासना विस्मृत सारी ।

राग द्वेष के भाव रहे ना, ममता से पहचान न कोई
अहंकार भी सुप्त पड़ा है, न आश्रय जग कण के हूं ।

मैं निराशी: बस प्रभू मेरे, "वयं रक्षामि" कहा है जिसने
गोविन्द मेरे गोपाल मेरे, बस मैं उनका, हैं प्रभु मेरे

रहूं बना बस , ऐसे जग में, करूं वन्दना प्रभु चरणों में 
पाप मेरे, सब पुण्य भी मेरे, कर्म मेरा क्या , सब प्रभु तेरे ।

कर्म मेरे सब अर्पण तुझको, अब तो नइय्या पार लगा दे
आवागमन के सभी द्वार , अब, प्रभु मेरे बन्द करा दे ।

             उमेश कुमार श्रीवास्तव
              भोपाल, दिनांक २१ ०१ २३

सोमवार, 16 जनवरी 2023

अपेक्षाओं का समर

प्रात की सांन्ध्य में
अरुण की प्रथम आभा
प्रदीप्त सी करती मुझे
जग उठती हैं
सब की अपेक्षाएं
आकांक्षाएं 
मुझमें
और मैं 
हो उठता हूं चैतन्य, 
आपूर्ति को
सभी की ईप्साएं
खपानें को 
अपनी समस्त ऊर्जा
जिससे उस्मित कर सकूं
प्राण उनके
जिन्होंने  अर्पित की हैं
अपनी ईप्सा
मुझे, इक आश संग ..
मैं सजग जी उठता हूं
उनका जीवन
अपने जीवन की तरह
कर प्रण 
प्राण कर समर्पित ।

 चाहते सब
हर संवेदना कर दूं समर्पित
भावनाओं का हर पोर
चिन्तन के हर तंतुओं को
जोड़ उनसे
उनके दुःखों को हरता रहूं
अपने सुखों से जब जोड़ना चाहें कभी
तब ही जुड़ूं
अन्यथा, ढूढ़ लूं
अपने सुखों के कणों को
मरुभूमि में ।

गो - धूली से सरोबर
खो तपन
लौटती गेह जब
सान्ध्य को,
चाहती
स्पर्श सलोना
संवेदनाओ से सरोबर
अवलेह बन
दुखते हुए हर पोर में
नव ऊर्जा संचार का
जो आधार हो ।

हा !
कहां ?
सुख !
खोजता क्या प्राण है !
दुःख जगत
वेदना में बसा हर प्राण है 
अपेक्षा ही जोड़ती
इक दूसरे से
तू सुमेरु मनिका 
बस आरम्भ को
ना अपेक्षित 
बस
उपेक्षित प्राण है ।

दिनांक १६.०१.२३
भोपाल










बुधवार, 11 जनवरी 2023

आकर्षण कब होता
जब कोई भा जाता है
जब कोई आ जाता है
इन मतवाली गलियों मे
और झूम जाती कुंज लताएं