शनिवार, 2 अप्रैल 2016

ग़ज़ल (ढूँढा बहोत हर कहीं)

ग़ज़ल (ढूँढा बहोत हर कहीं)


ढूँढा बहोत हर कहीं , न मिला कोई जबाब
क्या हो गया जनाब, क्यूँ  छुप गये हैं आप

अठखेलियों में, किसी के, दिल से न खेलना
छिप जाए ना किसी के दिल का ही आफताब

हमनें किसी को अब तलक देखा न इस निगह
चश्में-करम दिखा फिर , क्यूँ पलटे बता दें आप

तरन्नुम बना है शोर अब, मेरे इस जिगर में
बन के ख्याब यूँ क्यूँ , नींदों में छाए आप ?

कुछ तो होगा दिल में, जो नाम था लिया
मैने पुकारा तो क्यूँ,  बने अजनबी जनाब

अब तो करो करम की रौनक लौट आए
मेरा चैन मुझको , अब दे दीजिए जनाब

ढूँढा बहोत हर कहीं , न मिला कोई जबाब
क्या हो गया जनाब, क्यूँ  छुप गये हैं आप


उमेश कुमार श्रीवास्तव(०२.०४.२०१६)

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