मंगलवार, 28 जून 2016

मेघ

मेघ

इतना ना उड़ ऊपर मेघा
कि रीता रीता कहलाए
गुरुता ला खुद में थोड़ी
झुकना भी थोड़ा जाए

जितना ऊपर उठता तू है
कलुषित काया हो जाती
थोड़ी सी अमी पर हित ले झुके
तो तेरी ये छवि है धुल जाती

चातक तकते पपिहा तकते
सीप तके गज, बाँस तके
हो निराश धरा संतति
मेघा जो ज़रा तू दंभ तजे

झुक, नीर बना, हर्षित हो कर
बन, पीर-हरा, प्रमुदित हो कर
कर दान, सुधा, जग तारण को
राधेय हृदय सा आलोकित हो कर


उमेश कुमार श्रीवास्तव , जबलपुर, दिनांक २८.०६.२०१६

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