मंगलवार, 5 जुलाई 2016

हूँ मैं यूँ ही

हूँ मैं यूँ ही

गुनगुनाता हुआ गीत गाता रहा हूँ,

मैं यूँ ही सदा मुस्कुराता रहा हूँ

ठहरा नहीं पल किसी के लिए पर

हर पल की दुनिया मैं, बसाता रहा हूँ


मुझे पल ये मेरा न यूँ ही मिला है

अनेको जनम के करम साथ इसमे

मैं खुश रहूं और बाँटू यही बस

खुशियों से दुनिया यूँ सजाता रहा हूँ


पानी खुशी है माटी है दुखो की

मिला कर जिसे, बना ये है जीवन

इक इक बूँद कर ही मै जोड़ता हूँ

नमी इसकी ऐसे बचाता रहा हूँ


मुझे खींचती हैं सभी मृदु दिशाएं

मोहनी यूँ सदा रिझाती रही हैं

चंचल रहा मन मगर मुझसे पीछे

उसे राह मैं ही दिखाता रहा हूँ


ऐसा नही कि मिली ना हो ठोकर
 

गिर कर सम्हल कर बढ़ता रहा हूँ
 

मैं आँसुओ की हर बूँद को ले
 

खुशियों की देहरी सजाता रहा हूँ



समझ न सके जो , मेरी राह को

उन्हे मैं निराला लगता रहा हूँ

मुझे न शिकायत उनसे रही है

बदलने से खुद को बचाता रहा हूँ


गुनगुनाता हुआ गीत गाता रहा हूँ,

मैं यूँ ही सदा मुस्कुराता रहा हूँ


उमेश कुमार श्रीवास्तव , जबलपुर, दिनांक ०५.०७.१६


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