शनिवार, 8 जून 2019

नव विहान

नव विहान


धुंध से झांकती
पर्वत श्रृंखलाएं,
अलसाये जगे से
ये वृक्षों के साये ၊
खेतों में उगते
फसल के ये पौधे ,
कुहासे के बादल
उठते हैं जिनसे ၊
खगों की उड़ानें
धरा से गगन को ,
कीटों पर लगी
बकों की निगाहें ၊
क्षितिज पर है फैली
अरुण की लालिमा जो,
तमों को भगाती, हैं,
रवी की वो निगाहें ၊
प्रकृति जग रही
हो सुबह अब रही,
जगो प्राण अब तो
जगी सब हैं राहें ၊
जो सोते रहे
तो, खोते रहोगे,
बढ़ो आगे बढ़ कर
थामो, मंजिल की बाहें ၊
उमेश, दिनांक ०९.०६.१९, भोपाल शताब्दी ट्रेन , दिल्ली - भोपाल यात्रा

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