रविवार, 7 जुलाई 2019

क्या कहती , प्रेम रागनी बूंदो की

 क्या कहती , प्रेम रागनी बूंदो की



आओ चलें मीत,
सरस हम भी होलें
हौले से खोलें,
झरोखे ह्रदय के ,
मेघों की बून्दे,
कुछ,
उनमें संजो लें ၊

घिरे तो गगन पे
हैं , मानस को घेरे
लरजते , गरजते
पुकारें, बदन को ၊
आओ जरा संग
उनके बिताएं
बून्दों को उनकी
बदन से लगायें,
मद से भरी हैं
सुधा सी हैं बूंदे,
सराबोर हो कर
बहक थोड़ा जायें ၊

तनिक गेह अपनी
मुझसे सटा लो
तनिक देर लज्जा
खुद से हटा लो ၊
लरजते , हरसते
बहकते चलें हम,
बदरा के संगी
संग संग बहे हम ၊
बहको जरा तुम
बूंदो सी रिमझिम,
बहकें जरा हम
पवमान बन कर ၊
ह्रदय एक कर लें
बदन एक कर लें
जल-मेघ जैसे
मति एक कर लें।

हों, बाहों में बाहें
निगाहों में निगाहें
चपला सी चमको
हम झूम जायें ၊

बज रहें हैं देखो
हजारों नगाड़े ,
दामिनी भी चमक
कर रही है इसारे ၊
चलो आज फिर से
नया गात कर लें
नव प्रेम की फिर
शुरुआत कर लें ၊

उमेश , दिनांक ०७.०७.२०१९ , इन्दौर

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