गुरुवार, 7 मई 2020

तप्त कौमुदी

तप्त कौमुदी

ऐ चांद तू निकल जरा
आयाम पर चल जरा
देख मेरी प्यास को
सूखते अहसास को ၊

मैं तो बस चल रहा
रीता रीता पल रहा
जिन्दगी की चाह में
सुलग सुलग,जल रहा ၊

ऐ चांदनी , यूं गुमां न कर
संग आ , आह भर
तप्त हो निखर ज़रा
है दिलजले का मशविरा ၊

न कुछ भी हूं चाहता
प्यार का अहसास ला 
तू मुझे निरख जरा
अहसास प्यार के जगा ၊

मुझको न कोई चाह है
चाहत तेरी, इक चाह है
इक निगह बस प्यार की
जिन्दगी न्यौछार है ၊

ऐ चांद रूख बदल ज़रा
नज़र, मेरी नज़र से मिला
दर्द मिले गर उधर जरा
लगा पता है क्या माज़रा ၊

तू ही अगर मेरी धूप है
दर्द का मेरे,  रूप है
बदल जरा बदल जरा
मेरी कौमुदी तू बदल जरा ၊

उमेश श्रीवास्तव 
७.५.२० इन्दौर

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