मंगलवार, 27 अक्तूबर 2020

मेरे विचार

मेरे विचार

*भावना शून्य की स्थिति क्यों और कब होती है? इस स्थिति का मतलब क्या होता है सर?*

भावना क्या है पहले यह जाने
जब किसी व्यक्ति वस्तु या स्थान से लगाव उत्पन्न हो तो मन चिन्तन उससे जुड़ जाता है तो भाव उसके प्रति जगता है उसके हर अच्छे बुरे पहलू को हम भावना से जुड़ अपना मानने लगते हैं उसका हर सुख दुःख हमे खुशी या दुःख देता है मन की यह दशा ही भावना है

भावना शून्य हुआ ही नही जा सकता


नहीं सर मेरे साथ बहुत होता है जब मैं भावना शून्य हो जाती हूं

भाव न जगना पाषणता की निशानी है जहां प्राण है वहां पाषाण नही हो सकता और प्राणवान भावना शून्य नही हो सकता हर प्राण के स्पन्दन में भाव है

To मनुष्य पाषाण कब हो जाता है

जब उसके अन्दर का सब सरस भाव सूख जाये

रस का अभाव पाषाण बनाता है

सरसता जीवन है शरीर के हर अंग से रस बहाना जीवन का मूल है

हूं ,और रस का अभाव  कब और क्यों होता है ?

जब हम जान बूझ कर रेगिस्तान में अपने जीवन रस को बहा दें जहां रस का अजश्र श्रोत है उसको अनदेखा कर ၊

जीवन रस भाव है जिससे भावना बनती है यदि भाव किसी के प्रति जगे रस प्रवाहित हो उस दिशा में भावना की लहरें उठें ,वे लहरें नौ में से किसी भी रस तरल की हो ,उसके तक पहुंचे और फिर लुप्त हो जायें बिना किसी परिणाम तो हां वह रेगिस्तान है , पर उस तक भावना की लहरों का पहुंचना आवश्यक है , अन्यथा वह रेगिस्तान नहीं है वरन स्वयं में ही कहीं रेगिस्तान बना है जो स्वयं की भावना का शोषण कर रहा है ၊

उमेश कुमार श्रीवास्तव



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