गुलजार साहब की रचना का जवाब देने का प्रयास किया है ,
यदि पसन्द आये तो दो शब्द अवश्य चाहूंगा : -
पूरी कायनात है मेरा आशियां
घर में गुमसुम यूं बैठूं , जरूरत क्या है
लाख कातिल हों जमाने में यारों
दूर यारों से रहूं !
ऐ जिन्दगी तेरी जरूरत क्या है
सच कहा , है, बाहर की हवा कातिल
बैठूं घर में !
ऐ मेरे रहनुमा, फिर तेरी जरूरत क्या है
नेमत है जिन्दगी, ये जानता मैं भी
घर बैठ बेज़ार करूं !
फिर इसकी जरूरत क्या है
दिल बहलाने के लिये न जियो घर में
गलियां सूनी रहें ?
ऐ जिन्दगी , फिर तेरी जरूरत क्या है ?
उमेश श्रीवास्तव
केराकत, जौनपुर प्रवास
दिनांक २१.१२.२०२०
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें