शुक्रवार, 15 जनवरी 2021

*प्रेम* जीवन मेरा

*प्रेम* जीवन मेरा

 

कोपलें फिर फूट आई

कहना उसे,
दिल में मेरे ၊

सदियों पुराने वृक्ष का 
हूं ठूंठ मैं,
रस मेरा, हर रन्ध्र में,
ना सूखने देता मुझे ၊

छोड़ दो या तोड़ दो
यूं ही रहूंगा,
प्रेम का प्यासा रहा 
प्यासा रहूंगा ၊

निकल अपने रन्ध्र से
फिर से जगूंगा
प्रेम का मकरन्द ही
सुरभित करूंगा ၊

अनुकूल या प्रतिकूल
जैसा भी बना दो
मैं श्याम हूं 
श्याम बन फिर उठूंगा ၊

राधा बनी प्रेम रस
झरसा करो तुम
हरित पुष्पित हो 
पुनः मैं जी उठूंगा ၊

उमेश कुमार श्रीवास्तव 
शिवपुरी , दिनांक : १४.०२.२०२१


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