गुरुवार, 2 सितंबर 2021

अफ़सोस

फ़ितरत में है नहीं रह सकूँ दूर तुमसे 
मजबूर हो गया हूँ, अपने 'करम' से यारो
फिर रेत की दरिया में कश्ती है आ गई
सूखी कलम हमारी तर रोशनाई के बिना
                       
  उमेश, ग्वालियर १४.०२.१४

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