मंगलवार, 15 मार्च 2022

परिवर्तन

बून्द बून्द जीवन जल पीता
हर जीवन घट रीता रीता
तरल सरल निर्मल निर्झरता
त्याग चला ये जीवन मीता ।

सूख गये सब ही अब सोते
अपने सब अपनत्व हैं खोते
ह्रदय झरोखे सब के ही रीते
स्निग्ध भाव सब ही का बीता ।

मीत वृत्त खंडित हो जर्जर
अस्त व्यस्त रिस्तों के पंजर
दूर हुए सब अपनों के साये
दिये बुझे,है तम की अब गीता।

गिद्ध गये ,सब बने गिद्ध हैं
नोच खसोट में, सभी सिद्ध हैं
इनका किसी से भेद कहां है
इनका ही अब रूधिर सभी का ।

बदल गई सब परिभाषाएं
परवान चढ़ी हैं अभिलाषाएं
कहां रूकेंगी,क्या कोई जानें
विलख रहा है प्राण सभी का ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव
महाकाल एक्सप्रेस ट्रेन
वाराणसी से झांसी यात्रा
दिनांक १५.०३.२०२२










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