गुरुवार, 3 जुलाई 2025

माया का खेल

अब तक गूंज रहें हैं
वे शब्द
आंखो ने जिनको सुन
किया था
कर्ण पटल पर अंकित मेरे
" कुछ नही है मेरे दिल में
आपकी खातिर "
प्रेम, घृणा, तिरस्कार के
भावों के मध्य
अनेको अन्य भाव हैं जाग्रत
परा जगत के
मैं भी जान रहा , तुम सा ही
जिन्हे छिपा सकेगा कोई
क्यूं कर ।

हूं जान रहा
बहता हूं अब भी
उसी तरह 
तेरे हिय के, लहू कणों में
सांसों में भी तेरी
वैसे ही भरा हुआ हूं
जैसा खुद 
अनुभव करता हूं तुमको
अपने रक्त कणों में
और
अपान , उदान, व्यान, समान
के संग प्राण वायु के
हर आरोह अवरोह में ।

कितना निष्ठुर किया होगा तुमने
अपने हिय को
तरल सरल अविरल
बहती सरिता को
शुष्क रेत में परिवर्तित
बस,  तुम कर सकती हो

बस मेरे खातिर
हर झंझावात से दूर
मुझे करने को
तुमने बड़वानल को
खुद के खातिर 
आज चुना है
मुस्कान लिये अधरों पर
श्रृंगारिक
अग्निपथ पर
अपना जीवन होम दिया है ।

ना तुम भूल सकोगे
मुझको
ना मैं तुमको
पर 
आभासित इस जीवन में
तेरे कथनों का
मान रखूंगा
कि तेरे हिय में 
कुछ नही है
मेरे खातिर,
ना प्रेम ना घृणा
पर इससे इतर
जानना है बहुत
समाया जो इन सब से परे
है परा जगत की माया ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव

बुधवार, 2 जुलाई 2025

अषाण घन

अषाण घन 

छाये अषाण घन चहुंदिश नभ में
शुष्क धरा पर अंधियारी छाई
अधिवासी वन, पुर, पुरवा के
झूम उठे बरखा ऋतु आई ।

चहक रहें सब थलचर नभचर
जलचर ने भी तरुणाई पाई
सरसर सरसर बहे पवन है
बूंदो ने अगुवाई पाई ।

रिमझिम रिमझिम गाती बूंदें
पड़ धरती पर ताल बजाई
सोंधी सोंधी महक बिखरती
चपला चमक नृत्य दिखाई ।

मार्तण्ड छिपे वारिद में जा कर
उद्विग्न प्राण ने शीतलता पाई
जग आनन प्रमुदित फुहार तक
घन दुदुंभि दे बजे बधाई

बाजत ढोल दुदुंभि तुल्य घन
आतप दबा पावस ऋतु आई
इकसार बना रहा कब कोई
काल चक्र बस ले अंगड़ाई ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव
राजभवन , भोपाल
दिनांक : ०२.०७.२०२५