वे शब्द
आंखो ने जिनको सुन
किया था
कर्ण पटल पर अंकित मेरे
" कुछ नही है मेरे दिल में
आपकी खातिर "
प्रेम, घृणा, तिरस्कार के
भावों के मध्य
अनेको अन्य भाव हैं जाग्रत
परा जगत के
मैं भी जान रहा , तुम सा ही
जिन्हे छिपा सकेगा कोई
क्यूं कर ।
हूं जान रहा
बहता हूं अब भी
उसी तरह
तेरे हिय के, लहू कणों में
सांसों में भी तेरी
वैसे ही भरा हुआ हूं
जैसा खुद
अनुभव करता हूं तुमको
अपने रक्त कणों में
और
अपान , उदान, व्यान, समान
के संग प्राण वायु के
हर आरोह अवरोह में ।
कितना निष्ठुर किया होगा तुमने
अपने हिय को
तरल सरल अविरल
बहती सरिता को
शुष्क रेत में परिवर्तित
बस, तुम कर सकती हो
बस मेरे खातिर
हर झंझावात से दूर
मुझे करने को
तुमने बड़वानल को
खुद के खातिर
आज चुना है
मुस्कान लिये अधरों पर
श्रृंगारिक
अग्निपथ पर
अपना जीवन होम दिया है ।
ना तुम भूल सकोगे
मुझको
ना मैं तुमको
पर
आभासित इस जीवन में
तेरे कथनों का
मान रखूंगा
कि तेरे हिय में
कुछ नही है
मेरे खातिर,
ना प्रेम ना घृणा
पर इससे इतर
जानना है बहुत
समाया जो इन सब से परे
है परा जगत की माया ।
उमेश कुमार श्रीवास्तव
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