बुधवार, 2 जुलाई 2025

अषाण घन

अषाण घन 

छाये अषाण घन चहुंदिश नभ में
शुष्क धरा पर अंधियारी छाई
अधिवासी वन, पुर, पुरवा के
झूम उठे बरखा ऋतु आई ।

चहक रहें सब थलचर नभचर
जलचर ने भी तरुणाई पाई
सरसर सरसर बहे पवन है
बूंदो ने अगुवाई पाई ।

रिमझिम रिमझिम गाती बूंदें
पड़ धरती पर ताल बजाई
सोंधी सोंधी महक बिखरती
चपला चमक नृत्य दिखाई ।

मार्तण्ड छिपे वारिद में जा कर
उद्विग्न प्राण ने शीतलता पाई
जग आनन प्रमुदित फुहार तक
घन दुदुंभि दे बजे बधाई

बाजत ढोल दुदुंभि तुल्य घन
आतप दबा पावस ऋतु आई
इकसार बना रहा कब कोई
काल चक्र बस ले अंगड़ाई ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव
राजभवन , भोपाल
दिनांक : ०२.०७.२०२५











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