सोमवार, 23 मई 2016

क्षिप्रा कुंभ (सिंहस्थ) २२.०४.२०१६ से २१.०५.२०१६


ऐ क्षिप्रे ,

है कितना आकर्षण , तुझमें

आज दिख रहा, तेरा,

रूप लावण्य ,

वैभवपूर्ण यौवन का दर्पण,


ऐ क्षिप्रे,

है कितना आकर्षण, तुझमें ।

सभी दिशाएं दिगभ्रमित ,

व्याकुल सी ,

टकटकी लगाये निहार रही ,

वह जन समुदाय ,

जो है

अनगिनत,

कोलाहल की अनुगूंज

जिससे,पूरीत

कोना कोना उसका,

कर रहा चकित


अचंभित न तनिक

काल

जिसके भाल पर

है, रुद्र त्रिपुण्ड

औ, कर

महाकाल का


वेदना में आस्था,

आस्था में.

हास,

हास संग

परिहास ले,

चल रहे, मानव

झुण्ड

दसक नहीं , शतक नहीं

सहस्त्रों मील का पथ

कर न पाया

म्लान

आस्था के वेग


बढ़ रहा

नित प्रतिपल

जन समूहों का वेग

तट तेरे

सौपनें को

गोद में तेरी

अपना तन मन

सर्वस्व


छू तेरा आंचल

मचलते

प्राण

घात , संघात

निरन्तर हिय में

ज्यों दुलारती

ममतामयी तू

देती अक्षय

भण्डार आशीष का


ओजस्विता भर रही

हर प्राण में

तेरी अमी सम

हर बून्द

बह रही जो

मां नर्मदा के संग


हे क्षिप्रे,

तट पर तेरे

जो आज बैठे

तज जप ,कर्म ,तप स्थलों को

अपने,

वो ध्यान, कर्म, तप योगी

आये सम्पूर्ण भरतखण्ड से

बस वत्स बन कर

पानें मां का स्नेहिल

पय

सींचने

मनु वंशजों की

संतति को


हे क्षिप्रे,

देखो जरा उस रुद्र को

तेरी धरा पर खड़ा

निहारता

व्यवस्था सभी की

तेरे पुत्रों की व्यथा

हरनें

सदा सजग ,

अहिर्निश


रंक राजा संत

सभी

याचक बने

यह मां की महिमा

का स्वमं प्रमाण है

हे क्षिप्रे,

यह भौतिक जगत को

आध्यात्म का

प्रसाद है।


उमेश श्रीवास्तव (२१/०५/२०१६) उज्जैन सिहंस्थ

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