शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

बिरहन


बिरहन


घटा घनघोर घिरी चहु दिश
लरजत नार सलोनी
पनघट पर पिय बाट तकत गोरी
नयनन कै डार बिछौनी

चंचल चित लै ,मेघ मीत से
करत रार बरजौनी
पी की पाती लाए काहे नही
रहि बाट जोहति चौमहनी

पथराय गई नयनो की पुतरी
अधरादल पड़े सुखौनी
हिय मध्य दहत अगन जो
उरोज बने धौकोनी

तुम बरसो ना बरसो बदरा
मधुमास गयो तरसौनी
हर्षित फसल दूर की कौड़ी
ये खेत पड़े परतौनी

भीग गई चुनरी चोली
अंसुअन कै चुऐ ओरौनी
हुलसित हिय पेंग लगे तन पे
सब राग चले उतरौनी


मुझ बिरहन कै राग जरे सब
आग लागि बिछौनी
अखियन में नीद समाय सकी
उत, पी छवि लाय बसौनी


ना रोर करो मत शोर करो
मीत बनाय पछतौनी
अंधियारी घनेरि का तुम करो
पिउ की उजियारि बचौनी


हे मेघ मेरे साजन के सखा
इत आय मोहे लिपटा लो
सोख घनेरी व्यथा सब मोरी
उत लिपट तुम्ही समझा दो

उमेश कुमार श्रीवास्तव, जबलपुर,१५.०७.२०१६

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