गुरुवार, 11 जुलाई 2019

व्यथा

व्यथा


ऐ दामिनी ,
न इतरा यूं
पयोधर की बन
प्रेयसी,
गणिका ၊
न वारिस तू,
वारिद की,
तू बस अभिसारिका ၊

ये नर्तन तेरा
व्यर्थ,
न जमा धौंस
इन नगाड़ों की,
रीता है, हिय
कर्ण द्वय सुन्न, 
ग्रहण न करेंगे
स्वर इनके बेढब ၊

आरूढ़ अषाढी
मेघ सीस,
हे मेघप्रिया
न खो आपा,
सौदामिनी,
सौम्य हो जा,
ये घन जो रीता,
चुक जायेगी,
श्वेत वसन में,
वासना का त्याग कर,
जलधर त्याग देगा,
तो क्या करेगी ?

ऐ चंचला !
मैं वियोगी,
सह रहा व्यथा
विरह,
ये हास तेरा
परिहास बन,
चुभन दे रहा
हिय को मेरे,
आहों की मेरी
न बाट तक तू,
मदन सा तेरा
हश्र हो ना,
हूं भयभीत
परिणति पर
तेरी
ऐ चपला ၊

उमेश कुमार श्रीवास्तव ,जबलपुर, दिनांक ११.०७.२०१७

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