रविवार, 20 अक्तूबर 2019

जीवन के रिस्ते

जीवन के रिस्ते


न जानें क्यों
लोग ,जीते हैं
जीवन व रिस्ते
नये व पुराने समझ !
उम्र न जीवन की होती
न ही रिस्तों की ;
ये तो हर क्षण
नये रहते है
बस इन्हे जीने
या कहें यूं , कि
महसूसने का
अंदाज अलग होता है ၊
लेता हूं जन्म मैं
हर क्षण ,
इक नई काया ले कर ,
जीता हूं उसे
पूरे उमंगो और उन्मादों से भर ၊
जानता हूं अगला पल
काल की छाया में पलता
कौन सा क्षण चुपके से मेरी
काया हर ले ၊
यूं ही रिस्तों में भी
मैं यूं बहता ,
उद्‌गमी बून्दों से बनी
ज्यूं निर्झरणी धार चले
सरि की लहरों सा
हर क्षण नया उत्साह लिये ,
बहता प्रथम बून्द के
मिलन का अहसास लिये ၊
जन्म और मृत्यु की
जो दूरी है ,
ये सांसों से नही
अहसासों से जुड़ी रहती है ,
जीना आया नही तो
शत वर्ष भी व्यर्थ है,
जीना जो आ गया
हर पल का, पूरा अर्थ है ၊
हर पल को जियो
रिस्तों में महक ले कर
जो गया तो लौट फिर 
आयेगा नही
प्यास दोनों की 
अधूरी रह जायेगी
जिन्दगी से रिस्ते को.
कोई समझायेगा नहीं ၊
उमेश कुमार श्रीवास्तव , इन्दौर ०२.११.१९

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