मंगलवार, 3 नवंबर 2020

मन




         (1)

मन में ही तो तपन है
मन में ही है छांव
ढूढ़ सके तो ढूढ़ ले
कहां है उसकी ठांव ၊
         (2)
रमे रहे, मन में रहे 
प्रीत,प्रेम औ रार
प्रीत, प्रेम आनन्द है
रार टूट का द्वार ၊

उमेश कुमार श्रीवास्तव
दिनांक  : ४.११.२०

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