मंगलवार, 12 जुलाई 2022

व्यथा

व्यथा

ऐ दामिनी 
न इतरा यूं
पयोधर की बन
प्रेयसी
गणिका
न वारिस तू
 वारिद की
तू बस अभिसारिका

ये नर्तन तेरा 
व्यर्थ
न जमा धौंस
इन नगाड़ों की
रीता है, हिय
कर्ण द्वय 
सुन्न, ग्रहण न करेंगे
स्वर इनके बेढब
 
आरूढ़ अषाढी 
मेघ सीस
हे मेघप्रिया
न खो आपा
सौदामिनी
सौम्य हो जा
ये घन जो रीता
चुक जायेगी
श्वेत वसन में
वासना का त्याग कर
जलधर त्याग देगा
तो क्या करेगी 
ऐ चंचला

मैं वियोगी
सह रहा व्यथा 
विरह
ये हास तेरा
परिहास बन
चुभन दे रहा
हिय को मेरे
आहों की मेरी
न बाट तक तू
मदन सा तेरा
हश्र हो ना
हूं भयभीत 
परिणति पर
तेरी
ऐ चपला

उमेश कुमार श्रीवास्तव ,जबलपुर, दिनांक ११.०७.२०१७

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