रविवार, 17 जुलाई 2022

मुक्तक

लाखों दफ़ा सोचा हम भी चुप रहें 
दिल के गुबार हैं कि रहने नहीं दिये ।
हम मुंतज़र में बैठे उन साज की धुनों को
जिनको ख़ुदा नें शायद सरगम नहीं दिये।

...उमेश

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