शनिवार, 3 सितंबर 2016

ग़ज़ल: अहले दिल की तेरी दास्तां

ग़ज़ल
अहले दिल की तेरी दास्तां , तिश्नगी मेरी बढ़ा हैं गई
कुछ और पिला ऐ साकिया,दर्दे दिल भी ये बढ़ा गई
अब सुकून मुझे ज़रा मिले, कुछ तो जतन बता मुझे
तेरे रुख़ की इक झलक तो दे, न जला मुझे न जला मुझे
तेरे जाम को ये क्या हुआ, ब- असर से जा बे-असर हुए
लगा लब से अपने इन्हे ज़रा, इन्हे सुर्ख सा बना ज़रा
जो अश्क हैं इन चश्म में, बेकद्र में न बहा उन्हे
अश्क-ए-हाला ज़रा, तू मिला मेरी शराब में , शराब में
तोहमत न दे बहक रहा, मैं,तिरी महफिले जाम में
मै तो डूबता चला गया तिरी इस नशीली शाम में
वो असर हुआ है दिल पे कि, बे-असर हुई शराब भी
तेरा हुश्न तिरी वो दास्तां मेरे होश ही उड़ा गई
उमेश कुमार श्रीवास्तव,०३.०९.२०१६ जबलपुर

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