सोमवार, 5 सितंबर 2016

गजल: अय यार तेरी सोहबत

गजल
अय यार तेरी सोहबत में हम
हंस भी न सके रो भी न सके ।
किया ऐसा तुने दिल पे सितम 
चुप रह भी न सके औ कह भी न सके।
बेदर्द जमाना था ही मगर'
हंसने पे न थी कोई पाबन्दी
खारों पे सजे गुलदस्ते बन
खिल भी न सके मुरझा न सके
हम जीते थे बिन्दास जहां
औरों की कहां कब परवा की
पर आज तेरी खुशियों के लिये
खुश रह न सके गम सह न सके
हल्की सी तेरी इक जुंबिस
रुत ही बदल कर रख देती
पर आज दूर तक सहरा ये
तप भी न सके न जल ही सके
जब साथ न देना था तुमको
तो दिल यूं लगाया ही क्यूं था
यूं दम मेरा तुम ले हो गये
ना जी ही सके ना मर ही सके ।
उमेश कुमार श्रीवास्तव ०४.०९.१६

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