शनिवार, 17 सितंबर 2016

ग़ज़ल : तुम चाहो न चाहो


ग़ज़ल : तुम चाहो चाहो

तुम चाहो चाहो कोई बात नही
मैं जो चाहूं तो कोई इल्ज़ाम दो

बन शमा चाहे रौशन करो महफिलें
पर अंधेरो सा मुझे खुद से यूँ दूर करो

भले बैठो हर गुल पर तितली बन कर
खार कह मुझको यूँ बेजार करो

इश्क मानिन्द वादिये खुश्बू
बस महसूस करो चाहे दीदार करो

हुस्न पल भर इश्क ता कयामत रहे
रस्क--हुस्न कर इश्क पे ऐतबार करो

उमेश कुमार श्रीवास्तव , जबलपुर, ०७.०८.२०१६

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