मंगलवार, 6 सितंबर 2016

ग़ज़ल : चाहते तो थे नही

ग़ज़ल

चाहते तो थे नही कि आपको यूँ दर्द दें
क्या करें ज़ज्बात-ए- दिल हम बयां कर दिए

अर्जमन्द आप है नाज़ुक जिगर है आप का
अजनबी की बात पर यूँ आप हैं रो दिए

है अजब हाल ये मेरे लिए ऐ नासमझ
आईना खुद आज अपना अक्स है दिखा दिए

ऐ हवा थम जा ज़रा आँचल न उसका यूँ उड़ा
मासूक ने मेरे लिए अश्क हैं बहा दिए

क्या करें हम इल्तिजा आज़ाद इक परवाज़ की
सैय्याद ने पर काट के फिजाओं में उड़ा दिए

ऐ सनम सब्र कर टूटा नही ये दिल मेरा
वो हैं हम जिसने किर्चों से ताज बना दिए

आब-ए-तल्ख़ ये तेरे मरहम बन के आए हैं
जो जमाने ने थे दिए वो जख्म सारे भर दिए

ना तनिक गमगीन हो मुस्कुरा दो अब ज़रा
ये जमाना छोड़ दो अब आह भरने के लिए

आब-ए-तल्ख़ :  आंसू,  :  महान

उमेश कुमार श्रीवास्तव, जबलपुर,०७.०९.२०१६

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