शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019

पराभव

पराभव

सूखते तड़ाग, ताल ,कुओं की क्या बिसात
जब सूख रहे चारों तरफ,सागर के ही काफिले

पानी पानी हो गई पानी की हर बूँद
सूखे अधर कंठ जर्जर औ बंद बोतल देखकर

हमने सुना था कभी, पानी जो उतरा सब गया
अब तो चाँदी है उन्ही की जिनमे पानी  ना रहा

अब कलरव है कहाँ,कहाँ,गोधूली की रम्भान अब
छोड़ जाते जो धरा को उन प्राणियों का बस शोर है

जागने को कह रहे सोते रहे जो उम्र भर
है कयामत की रात जागो कह रहे वो चीख कर

पतन का भी कोई तल अब तो तू मान ले
हर अस्थि मज्जा रक्त में, खुद को ही पहचान ले

इस धरा पर कोई ,ना जिया, अनन्त काल तक
नीर बन फिर जी जगत में सब प्राणियों का उद्धार कर

उमेश कुमार श्रीवास्तव (१२.०४.२०१६)

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