शनिवार, 13 अप्रैल 2019

प्रेम रस

प्रेम सुधा की दो बून्दे
सागर को मीठा कर सकती
अमी सदृष्य, जरजर तन को
नव यौवन से हैं भर सकती

उपमायें जितनी दे सकते
जग के शायर औ कवि सारे
सब कम हैं , क्या देंगे वो
इस प्रेम तृषा के मारे ၊

रस प्रेम झरे जग कण कण से
पर भाग पड़े अनुरक्त जगत
अजर रहे अमरत्व लिये
चिर यौवन ज्यूं ये प्रकृति जगत ၊

उमेश १३ .०४ .२०१९ इन्दौर

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