रविवार, 21 अगस्त 2016

ग़ज़ल ; तेरी आँखो से मुझे

ग़ज़ल

तेरी आँखो से मुझे झील का अहसास क्यूँ है
तेरे आने से मेरी जिंदगी में मधुमास क्यूँ है

आग लग जाती है सीने में जब तकता हूँ तुझे
पर इस जलन में सुकून का अहसास क्यूँ है

अब तलक तल्ख़ सहरा पे पड़ते थे कदम
संग तेरे हर राह में जन्नत का अहसास क्यूँ है

तू जो जीती रही जिंदगी औरो के लिए
ओ कोई और नहीं मैं हूँ ये अहसास क्यूँ है

अब तलक जान सका ना तेरी फितरत ऐ सनम
फिर भी कूंचे में तेरी खुशियों का अहसास क्यूँ है

आज कह दो न छिपाओ राज अहले दिल के
मेरी सासों में तेरी सासों का अहसास क्यूँ है

उमेश कुमार श्रीवास्तव ०३.०२.२०१४

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