सोमवार, 29 अगस्त 2016

गजल : आपको आप से ही ,चुरा क्यूं न लूं

गजल

आपको आप से ही ,चुरा क्यूं लूंआपकी जो रज़ा हो, गुनगुना क्यूं लू।
आपकी शोखियां मदहोश कर गईसोचता हूं बे-वजह मुस्कुरा क्यूं लूं।
हूं जानता आप मेरे नहींइस दिल में आपके बसेरे नहीं
मानते पर कहां दिल के जज्बात हैंइक घरौंदा तिरा मैं बना क्यूं लूं।
आप यूं चल दिये ज्यूं देखा नहींरूप की धूप को चांदनी से उढ़ा
चांदनी से जला,खाक बन जायेगाखाक--बदन फिर उड़ा क्यूं लूं।
कदमों में लिपट चैन पा जाऊंगागेसुओं में भी थोड़ा समा जाऊंगा
सबा से जो मदद,थोड़ी मिल जायेगीबदन से लिपट झिलमिला क्यूं लूं।
आपको आप से ही चुरा क्यूं लूंआपकी जो रज़ा हो गुनगुना क्यूं लूं।
उमेश २८.०८.२०१६ जबलपुर

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