बुधवार, 31 अगस्त 2016

ग़ज़ल : आज जगते रहे हम


ग़ज़ल

आज जगते रहे हम यूँ ही रात भर
चाँद आना था चाँद आया नही 

बेकरारी रही सलवटों पे दिखी
लाश बन कर पड़ा जिश्म जलता रहा 
लोग कहते रहे है बादलों में छिपा
चाँद आना था चाँद आया नही 

ये पता न चला रूठ कर क्यूँ गया
हम मनाने की कोशिश कर ना सके 
विदा कह गया , अलविदा कर गया
चाँद आना न था चाँद आया नही 

आज कैसे कहूँ चाँद मगरूर है
जब दिल भी मेरा साथ देता नही 
कह गया था उसे साथ ले आएगा
चाँद आना था चाँद आया नही 

चन्द पलों में अभी सुबो हो जाएगी
हर तमन्ना सबा संग खो जाएगी 
हसरतें, हसरतें हैं, हसरतों का है क्या
चाँद आना था चाँद आया नही 

महताबे रौशनी चाँदनी अलबिदा
जिश्म से जा रही जां तुझे अलविदा 
आफताबे हवाले चमन अलविदा
चाँद आना था चाँद आया नही 

उमेश कुमार श्रीवास्तव , जबलपुर ,३१.०८.२०१६



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