शुक्रवार, 12 अगस्त 2016

ग़ज़ल ज़ुल्फो को न सुलझाओ यूँ हाथों से


ग़ज़ल

ज़ुल्फो को न सुलझाओ यूँ हाथों से
बेबस दिल को उनमें उलझाया न करो

पलकों को यूँ न गिराओ अदाओं से
पेवस्त खंजर दिल में यूँ कराया न करो

तुम चाहो न चाहो कोई बात नही
मैं जो चाहूं तो इल्ज़ाम यूँ लगाया न करो

शमा बन चाहे करो रौशन महफ़िल
पर अंधेरो सा मुझे  यूँ दूर भगाया न करो

भले बैठो  हर साख पर तितली बन कर
खार कह मुझको यूँ पराया न करो

हम तो जीते ही हैं तेरे दम पर हमदम
दम जब मेरी तुम, रूठ यूँ जाया न करो

....उमेश कुमार श्रीवास्तव, जबलपुर ०७.०८.२०१६




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