बुधवार, 1 जुलाई 2020

रे अम्बुद सुन..

रे अम्बुद सुन...

उठती माटी से सुरभित बास
 बून्दे सस्मित, ताल दे रही
तरु पल्लव कर उज्जवल आभास
मगन नाचते,बौराये से
धरा गगन मध्य झूम झूम
आभासी उद्गार जताते
रे जलद धरा है प्यासी प्यासी
जा ठहर तनिक,
तन भीगा मन भी कर तर तू
आभासी बरखा ना बन
ये तड़ाग लख सूखा रीता
ये प्रवाहिनी तकती तुझको
जलधारा की आश जगा
तू कर निरझर्णी फिर आपगा
न निष्ठुर बन
किसलय मेरे कर रहे प्रतीक्षा
मेरे नाभिक में
उनका तू उद्वारक बन
तेरा मंजुल श्याम वर्ण
मनमोहन की प्रतिछाया
जाये निर्थक नाम तेरा
क्या पायेगा
दे सकल जल निधि
थल जल कर
बे नीर पड़ा जग
जग  मग कर जल
हे वारिधर,
सुरभि सुवासित वसुधा
मांग रही अपने अंशो हेतु  
तुझी से , सौंप दिया था 
अम्बु तुझे जो ,
हे अम्बुद 
उमेश कुमार श्रीवास्तव
 दिनांक ०१.०७.१७ ,जबलपुर

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