बुधवार, 22 जुलाई 2020

गज़ल : खुद समझ पाया नहीं अपने मिज़ाज को

ग़ज़ल

खुद समझ पाया नही मैं अपने मिज़ाज को
लोग कहते हैं मुझे, यूँ खुल जाया न करो

दिल है बच्चा जो मेरा, तो क्या ग़लत हुजूर
मेरे दिल पर उम्र का, स्याह साया न करो

काश तुम भी भूल कर, आ जाते इस गली
फिर ये कहते. यूँ उम्र को, तुम जाया न करो !

हम तो चलते उस राह पर, जो नेमत मे है मिली
तन्हाइयों की राह हमें, तुम बतलाया न करो

अलमस्त हूँ अल्हड़ हूँ मैं, परवाह नहीं इसकी मुझे
तुम सबक संजीदगी का, यूँ सिखाया न करो

मैं निरा बच्चा रहूं बच्चा जियूं बच्चा मरूं
तुम मेरे मिज़ाज को औरों से मिलाया न करो

खुली किताबे हर्फ हूँ जो चाहे पढ़ ले जब कभी
इंसानी फितरत से मेरा ताल्लुक कराया न करो

खुद समझ पाया नही मैं अपने मिज़ाज को
लोग कहते हैं मुझे, यूँ खुल जाया न करो

उमेश कुमार श्रीवास्तव , जबलपुर,  "मेरी ग़ज़लें" से

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